फागुन का आगमन मन और तन को आनंदित कर, रंगीन बयार लेकर आया है। धूल भरी राहों से गुजरते हुए फागुन प्रकृति की गोद में नई तरंगें ला रहा है। फागुन यानी पलाश, शिमलू और मदार के लाल फूलों से आकाश का रँगना। इसी रंगीन फागुन में नदियों के किनारे बसे मिसिंग समुदाय के लोग माजुली के विभिन्न स्थानों के साथ-साथ बेङेना कोलिया में भी ‘आली-आये-लिगांग’ उत्सव की भव्य तैयारी कर रहे हैं।
‘आली-आये-लिगांग’ मुख्य रूप से मिसिंग समुदाय का एक कृषि आधारित लोक उत्सव है। खेतों में नई फसल रोपने से पहले उत्साही मिसिंग युवक-युवतियाँ गुमराग-सोमान और लत्ता-सोमान नृत्य से धरती को झंकृत कर रहे हैं। ओइनितोम गीतों की मधुर धुनों में खोए हुए इस उत्सव को मिसिंग समुदाय हर साल हर्षोल्लास से मनाते आ रहे हैं।
सर्दियों की ठिठुरन भरी सुबह में खेरकटिया नदी के किनारे खुले मैदान में फागुन की मस्ती बिखेरते हुए मिसिंग युवक-युवतियाँ पारंपरिक लोक नृत्य में मग्न हो गए हैं। मिसिंग कन्याएँ अपने करघों पर रंग-बिरंगे धागों से सपनों की बुनाई कर रही हैं और स्नेह से बुने वस्त्र तैयार कर रही हैं। प्रेम और उमंग से भरी इस फागुनी बयार में मिसिंग युवक-युवतियों के होठों पर मधुर ओइनितोम गीतों की मिठास घुल रही है।
मृगनयन बोरुआ, जिला प्रमुख, माजुली, मरुधारा, प्राइम न्यूज