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बहुत खतरनाक मोड़ पर पहुंच गया है दिल्ली विधानसभा का चुनाव।

कांग्रेस बताए कि परिणाम के बाद भाजपा को समर्थन देगी या केजरीवाल को।
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दिल्ली विधानसभा का चुनाव देश के लिए इसलिए महत्वपूर्ण है कि दिल्ली भारत की राजधानी है। पिछले दस वर्षों से दिल्ली प्रदेश में आम आदमी पार्टी की सरकार है और इस सरकार के मुखिया अरविंद केजरीवाल के केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा की सरकार के साथ टकराव को पूरा देश देख रहा है। इसका खामियाजा दिल्ली वासियों को उठाना पड़ रहा है। केजरीवाल को अच्छी तरह पता है कि दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है, लेकिन वे चाहते हैं कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तरह अधिकार मिल जाए। इस बार दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान होना है, लेकिन चुनाव से पहले दिल्ली के हालात खतरनाक मोड़ पर पहुंच गए है। हरियाणा की सीमा पर किसानों का धरना कमजोर पड़ने के बाद दिल्ली में पंजाब के नंबर वाले वाहनों की संख्या अचानक बढ़ गई है। पंजाब में

केजरीवाल के नेतृत्व वाली आप की सरकार है। पंजाब के हालात जगजाहिर है। पंजाब में खालिस्तान समर्थकों की गतिविधियां लगातार बढ़ रही है, इसको लेकर केंद्रीय एजेंसियों ने पंजाब सरकार को भी सावचेत किया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और इस चुनाव में अरविंद केजरीवाल के सामने खड़े होने वाले संदीप दीक्षित (पूर्व सीएम शीला दीक्षित के पुत्र) ने भी दिल्ली में पंजाब नंबर वाले वाहनों पर चिंता जताई है। दीक्षित ने दिल्ली पुलिस से आग्रह किया है कि इन वाहनों में घूम रहे लोगों की पड़ताल की जाए। देश के हर राज्य की तरह दिल्ली चुनाव में भी हिंदू मुस्लिम का मुद्दा चरम पर है। केजरीवाल की पार्टी के मुस्लिम नेताओं का सार्वजनिक तौर पर कहना है कि यदि मुसलमानों के वोट विभाजित हुए तो भाजपा जीत जाएगी। ऐसे में नेताओं ने मुस्लिम मतदाताओं को कांग्रेस के उम्मीदवारों से सावधान रहने को कहा है। इस बार कांग्रेस भी पूरे दम से विधानसभा के चुनाव लड़ रही है। इसलिए आप के नेताओं को मुस्लिम मतों में विभाजन की चिंता हो गई है। जिस नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र से अरविंद केजरीवाल उम्मीदवार है, वहां भी मुस्लिम मतदाताओं की संख्या ज्यादा है, लेकिन अपनी दिवंगत माता जी और दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित के नाम पर कांग्रेस के उम्मीदवार संदीप दीक्षित ने बड़ी संख्या में मुस्लिम मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित किया है। कांग्रेस की मजबूत स्थिति को देखते हुए भाजपा के उम्मीदवार प्रवेश वर्मा (पूर्व सीएम साहिब सिंह वर्मा के पुत्र) कुछ ज्यादा ही उत्साहित है। संदीप दीक्षित और प्रवेश वर्मा के समर्थकों का दावा है कि इस बार केजरीवाल विधानसभा का चुनाव ही हार जाएंगे। भले ही केजरीवाल स्वयं को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बता रहे हो, लेकिन दीक्षित और वर्मा के समर्थकों का अनुमान है कि केजरीवाल इस बार विधायक भी नहीं बन पाएंगे। खुद केजरीवाल ने भी कहा है कि उनके विधानसभा क्षेत्र में हजारों मतदाताओं के नाम हटा दिए गए है। असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली एआईएमआईएम ने तो उन मुस्लिम नेताओं को उम्मीदवार बना दिया है जिन पर दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे करवाने के गंभीर आरोप है। भारत में भले ही लोकतंत्र की दुहाई दी जाती हो, लेकिन दिल्ली का चुनाव खतरनाक मोड़ पर पहुंच गया है। यह देश की एकता और अखंडता के लिए भी खतरा है।

कांग्रेस किसे समर्थन देगी?:
वर्ष 2015 और 2020 में हुए चुनावों में दिल्ली में कांग्रेस को 70 में से 1 सीट भी नहीं मिली। लेकिन इस बार कांग्रेस ने कुछ सीटें हासिल करने के लिए पूरी ताकत लगा दी है। खुद राहुल गांधी थी प्रचार अभियान में जुटे हैं। राहुल गांधी की सक्रियता को देखते हुए भी कांग्रेस को उम्मीद है कि इस बार कुछ सीटें तो मिल जी जाएगी। ऐसे में सवाल उठता है कि चुनाव के बाद कांग्रेस सरकार बनाने के लिए किसे समर्थन देगी? माना जा रहा है कि इस बार दिल्ली में किसी एक दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिलेगा। ऐसे में हो सकता है कि सरकार बनाने के लिए भाजपा अथवा केजरीवाल को कांग्रेस विधायकों के समर्थन की जरूरत हो। पूर्व में अरविंद केजरीवाल कांग्रेस के समर्थन से सरकार बना चुके हैं, लेकिन तब केजरीवाल की सरकार ज्यादा दिन नहीं चल पाई। भले ही कांग्रेस के भाजपा के साथ गंभीर राजनीतिक मतभेद हो, लेकिन कांग्रेस भी इस बार दिल्ली में केजरीवाल के नेतृत्व वाली सरकार को देखना नहीं चाहती है।

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